पश्चिम बंगाल- राजनीतिक रण के लिए माहौल देकर जा रहा है साल 2018

विचार मंच
मयंक व्यास
मयंक व्यास

वर्ष 2018 पश्चिम बंगाल की राजनीति के लिए बेहद खास रहा है। पश्चिम बंगाल की सभी पार्टी इस साल हुए नफा नुकसान का अंदाजा लगाने में जुट गई है। यह साल राज्य की राजनीति में ना केवल एक बड़ा परिवर्तन की लहर बनाकर अलविदा हो रहा है बल्कि आने वाले साल को भी राजनीतिक रण के लिए माहौल देकर जा रहा है।
यही वह साल है जब पंचायत चुनाव के नतीजों के साथ, सदियों से राज्य में सत्ताधारी के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी रही माकपा हाशिए पर चली गई। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में पैर जमाने की कोशिश में जुटी बंगाल के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हाथों स्थापित भाजपा ने मई महीने में सभी को चौंका दिया और राज्य भर में हुए पंचायत चुनाव में हर जगह दूसरे नंबर पर आकर सत्तारूढ़ तृणमूल के लिए नई चुनौती बनकर उभरी। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने कई झंडे गाड़े हैं। प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच बढ़ती लड़ाई को देखा, मुख्य विपक्षी दलों कांग्रेस और माकपा जमीनी स्तर पर अपने समर्थन को खोकर हाशिए पर चले गए। पंचायत चुनावों के दौरान हिंसा और सांप्रदायिक झड़पें हुईं और जब चुनाव परिणाम आया तो भाजपा ना केवल मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी थी बल्कि कई जगह पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को मात देकर पंचायत और जिला परिषदों पर दखल भी जमा लिया।
राज्य में न केवल तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच द्विध्रुवीय राजनीति देखी गई बल्कि तेजी से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी हुआ।
इसी साल जहाँ भाजपा ने 2019 के चुनाव के लिए 22 सीटों का लक्ष्य रखा तो तृणमूल ने भाजपा को 1 भी सीट न जितने देने की बात कही।
यही वह साल रहा जहाँ प्रदेश ने हिंसक पंचायत चुनाव के साथ-साथ रामनवमी, दुर्गापूजा विसर्जन, सरस्वती पूजा करने की रोक, से लेकर दुर्गा पूजा के लिए पूजा कमिटियों को राज्य सरकार द्वारा दी गयी राशि के विरोध में मौलानाओं द्वारा मासिक भत्ता बढ़ाए जाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरते देखा।
इधर राज्य में तेजी से पांव पसार रही भाजपा को पूरे देश में रोकने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने काउंटर किया, जिसमें आरोप लगाया कि भाजपा राज्य में सांप्रदायिकता का जहर फैला रही है। तृणमूल पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने देशभर का दौरा किया और अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ एकजुट लड़ाई डालने के लिए विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। ममता बनर्जी ने क्षेत्रीय दलों के एक संघीय मोर्चे के विचार को बल दिया और भाजपा विरोधी मतों का अधिकतम मतदान सुनिश्चित करने के लिए देश भर में भाजपा के खिलाफ एक होकर लड़ाई का प्रस्ताव रखा। तृणमूल कांग्रेस ने 19 जनवरी को ब्रिगेड महासम्मेलन की घोषणा की है जिसमें देशभर की सभी विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित किया गया है। वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस ने तृणमूल पर आरोप लगाया है कि बंगाल में भाजपा को बढाने का काम तृणमूल कर रही है।
भाजपा और तृणमूल के अलावा कांग्रेस के संगठन के स्तर में भी इस साल बड़ी फेरबदल हुई है। लंबे समय से पार्टी के अध्यक्ष रहे अधीर रंजन चौधरी को तीन महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है और सोमेन मित्रा को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गई है। उन्होंने नई रणनीति बनाकर पार्टी को नए सिरे से चंगा करने की कोशिशें तेज की है। इस बीच पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत में प्रदेश कांग्रेस को भी थोड़ी बहुत मजबूती दे दी है। हालांकि माकपा अपनी पुरानी चाल से चलती रही लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की ओर से किसानों को लेकर कई रैलियां की गई है। इस साल पार्टी ने जमीनी स्तर पर उतरकर कई आंदोलन करने की भी योजना बनाई लेकिन दक्षिण 24 परगना के भांगड़ के अलावा पार्टी को राज्य में कहीं और सफलता नहीं मिली।
तृणमूल, भाजपा, कांग्रेस और माकपा सभी ने अपने अपने स्तर पर खुद को बढ़ाने का प्रयास किया पर माकपा इसमें विफल होते दिखी। कांग्रेस भी सफलता पाने में कामयाब नहीं हुई पर हाल ही 5 राज्यो के चुनाव में जीत और युवा कांग्रेस के नए अध्यक्ष ने ऊर्जा भर दी ही। भाजपा अपनी छाप छोड़ने में सफल हुई तो वहीं सत्ताधारी तृणमूल अपने जगह पर अडिग है। मुख्य रूप से मुकाबला तृणमूल बनाम भाजपा ही दिख रहा है, तृणमूल जहाँ भाजपा पर सांप्रदायिक हिंसा कराने के आरोप लगाते आई है तो वहीँ भाजपा तृणमूल पर तुष्टिकरण के आरोप मँढ़ते आई है। जिससे रण का माहौल बनता रहा हैं। जिसे देख लगता है कि इसी साल जनवरी में हुई भाजपा की बाइक रैली के दौरान जैसी हिंसा का माहौल 2019 में भी न हो जाए।

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