टीएमसी की जीत के एक साल: हर चुनाव में जीत, हिंसा, घर वापसी और गुटबाजी रही चर्चा में

बंगाल

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में राज्य की सत्तारूढ़ दल टीएमसी की जीत के एक साल हो गए है। पिछले एक साल के दौरान हुए विधानसभा उपचुनावों, लोकसभा उपचुनावों और नगरपालिकाओं चुनावों में टीएमसी ने न केवल जोरदार तरीके से जीत हासिल की है, बल्कि लोकसभा चुनाव 2018 और विधानसभा चुनाव 2021 में विपक्ष के रूप में उभरी बीजेपी का जनाधार धीरे-धीरे खिसकता नजर आया है।

 

बता दें कि साल 2021 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी ने बीजेपी को करारी शिकस्त देते हुए 294 सीटों वाली विधानसभा में 215 सीटों पर जीत हासिल की थी और जबकि बीजेपी को मात्र 77 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नंदीग्राम में हार का सामना करना पड़ा था लेकिन उपचुनाव में भवानीपुर से प्रचंड जीत मिली।

घर वापसी का दौर

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले बड़ी संख्या में टीएमसी के नेता बीजेपी में शामिल हुए थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद अब बीजेपी में भगदड़ मची है। मुकुल रॉय सहित बीजेपी के पांच विधायक टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। विधानसभा में टीएमसी विधायकों की संख्या 215 से बढ़कर 222 हो गई है।अब टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए सांसद अर्जुन सिंह भी बगावत की मुद्रा में है और लगातार अपनी ही पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि वह भी शीघ्र ही टीएमसी में वापस लौटेंगे और सिर्फ अकेले नही लौटेंगे।

उपचुनाव में आसनसोल सीट पर कब्जा

बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद बाबुल सुप्रियो ने बीजेपी से नाता तोड़ कर टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। इसके साथ ही बीजेपी ने उपचुनाव में आसनसोल सीट गवां दी है। प्रत्येक दिन कहीं न कहीं से बीजेपी नेताओं की बगावत की खबरें आती रहती हैं। अब टीएमसी से बीजेपी में शामिल हुए सांसद अर्जुन सिंह भी बगावत की मुद्रा में है और लगातार अपनी ही पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि वह भी शीघ्र ही टीएमसी में वापस लौटेंगे।

चुनाव बाद हिंसा और गुटबाजी भी रही चर्चा में

पिछले साल 2 मई को चुनाव के नतीजे घोषित होते ही राज्य के अलग-अलग इलाके में हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ की गई। यही नहीं बीजेपी कार्यकर्त्ताओं उनके समर्थकों पर हमले किए गए और उनकी हत्याएँ भी हुई। इसके डर से कई लोग अपनी जान बचाने के लिए प्रदेश छोड़कर चले गए, जो इस हिंसा के एक साल बाद भी अपने घरों को नहीं लौट पाए। पिछले एक साल में चुनाव बाद हिंसा का मामला चर्चा में रहा। इसके अलावा पिछले एक साल में कई जगहों पर तृणमूल के ही दो गुट आपस मे भिड़ते नजर आए और गुटबाजी खुल के सामने आई।

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