New Parliament Building

New Parliament Building – नई संसद में 1272 सांसदों की बैठने की व्यवस्था, क्या 2024 से पहले सरकार बढ़ा सकती है सीटों की संख्या?

देश

आजादी के 75 साल बाद भारत के सांसद अब नई संसद भवन (New Parliament Building) में बैठेंगे। 862 करोड़ रुपये की लागत से बना तिकोने आकार के चार मंजिला नए संसद भवन का उद्घाटन ((New Parliament Building inauguration) 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

राज्यसभा और लोकसभा के साथ-साथ नए संसद भवन में एक संविधान हॉल भी होगा। नए भवन के लोकसभा में 888 सांसदों की बैठने की क्षमता (Seats in New Parliament Building) है। राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकेंगे। दोनों सदनों के संयुक्त सेशन में 1,272 लोग बैठ सकेंगे। पुराने संसद भवन में लोकसभा सांसदों की बैठने की क्षमता 552 थी।

New Parliament Building में सीटों के बढ़ाने से उठने लगे सवाल

New Parliament में जिस तरह बैठने के लिए सीटों की क्षमता बढ़ाई गई है, उससे कई सवाल उठने शुरू हो गए हैं। क्या भारत में लोकसभा सीटों की संख्या तय करने के लिए नया परिसमीन होगा? क्या 543 से ज्यादा लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होंगे? क्या दोनों सदनों में सीटों की संख्या सरकार बढ़ाएगी?

अभी देश में लोकसभा की कुल 545 सीटें हैं, जिसमें से 543 सीटों पर चुनाव कराया जाता है। 545 सीटों की संख्या 1976 परिसीमन में तय हुआ था। वहीँ राज्यसभा में 250 सीटें हैं, जिसमें से 12 सीट पर राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं और बाकी के सीट पर विधायकों के वोट से सांसद चुने जाते हैं। तो क्या 1976 के बाद फिर परिसीमन कर लोकसभा सीटें बढाई जाएंगी।

New Parliament Building

10 लाख पर एक सीट का फॉर्मूला किया गया था सेट

1976 में जब लोकसभा का परिसीमन किया गया तो उस वक्त भारत की आबादी 50 करोड़ थी। यानी करीब 10 लाख पर एक सीट का फॉर्मूला उस वक्त सेट किया गया था। भारत की वर्तमान आबादी करीब 142 करोड़ है। जनसंख्या मुकाबले सीटों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। आंकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो वर्तमान में 17 लाख लोगों पर एक सांसद हैं।

पुरानी संसद का इतिहास

पुराने संसद भवन को 83 लाख रुपये की लागत पर ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने ‘काउसिंल हाउस’ के रूप में डिजाइन किया था। उस वक्त इस भवन में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी। इसे बनाने में छह साल(1921-1927) लगे थे। करीब 100 साल पहले जब संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस वक्त दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-2 में थी लेकिन अब यह चार में पहुंच गई है।

देश में कैसे तय होती है लोकसभा की सीटें?

केंद्र में सरकार बनाने के लिए लोकसभा की सीटें अहम होती है. लोकसभा में बहुमत के आधार पर ही सरकार बनाया जा सकता है। भारत में संविधान का अनुच्छेद-81 लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है। इसके मुताबिक जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या तय की जा सकती है। इसके लिए चुनाव आयोग को परिसीमन कराना होगा।

क्या है परिसीमन

परिसीमन का शाब्दिक अर्थ होता है- किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया। डिलिमिटेशन एक्ट 2002 के मुताबिक परिसीमन की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व जज कर सकते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त या उनकी तरफ से नामित चुनाव आयुक्त भी इसके सदस्य होते हैं।

परिसीमन आयोग विस्तृत अध्ययन के बाद 2 पहलुओं पर रिपोर्ट देगा- लोकसभा की सीटें कितनी होंगी? राज्यवार सीटों की संख्या क्या होगी? अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि हर 10 साल पर जब जनसंख्या का डेटा आ जाए, तो सीटों के आवांटन पर विचार किया जा सकता है। भारत में 1976 में जनसंख्या को आधार बनाकर ही लोकसभा में सीटों की संख्या तय की गई थी।

New Parliament Building

2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीट करने की मांग की थी

2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीट करने की मांग की थी। मुखर्जी ने इसके पक्ष में दलील देते हुए सवाल उठाया था कि आखिर कोई सासंद कितने लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकता है? उन्होंने कहा था कि भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों को देखें, तो मतदाताओं की संख्या उसके अनुपात में बहुत अधिक है। भारत में साल 2002 में लोकसभा में सीटें बढ़ाने के लिए परिसीमन की कवायद की गई थी, लेकिन राजनीतिक विरोध के बाद उस वक्त इसे रोक दिया गया था। इतना ही नहीं, एक प्रस्ताव के जरिए 2026 तक के लिए परिसीमन को होल्ड कर दिया गया था।

2024 से पहले सरकार बढ़ा सकती है सीटों की संख्या?

New Parliament Building बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या 2024 के चुनाव से पहले लोकसभा की सीटें बढ़ सकती है? फिलहाल, इसका जवाब अभी केंद्र की ओर से नहीं दिया गया है, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे मुश्किल मान रहे हैं।

इसके मुख्य कारण है –

  1. 2026 तक परिसीमन पर लगी है रोक – 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान के 84वें संशोधन के तहत परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दिया था। 2024 से पहले इस रोक को हटाने के लिए सरकार को मानसून सत्र में इसे पास कराना होगा जो फ़िलहाल संभव नहीं लगता। सरकार अगर संविधान में संशोधन कर भी देती है, तो पूरी प्रक्रिया होने में कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है। ऐसे में 2024 के चुनाव से पहले यह मुश्किल लग रहा है।
  1. नहीं हुई है 2021 की जनगणना – अब तक के नियम के मुताबिक हालिया जनगणना के आधार पर ही सरकार लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ा सकती है। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से अब तक 2021 का जनगणना नहीं कराया गया है। हाल ही में ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने के लिए कहा था। एक बार सीमाएं फ्रीज होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है। जनगणना न होने की वजह परिसीमन का डेटा तैयार करने का सरकार के पास कोई आधार नहीं होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि जनगणना होने के बाद ही सरकार इस पर विचार कर सकती है।
  2. संख्या को आधार बनाने के खिलाफ दक्षिण की पार्टियां – लोकसभा में सीटें बढ़ाने का सबसे बड़ा आधार जनसंख्या है, लेकिन दक्षिण की पार्टियां इसका पुरजोर विरोध कर रही है। दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियों का कहना है कि सरकार अगर जनसंख्या को आधार बनाकर परिसीमन करेगी तो उत्तर भारत का दबदबा बढ़ जाएगा।
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