
योग (International Day of Yoga) शब्द सुनते ही आपके मन मस्तिष्क में पहली तस्वीर क्या बनती है। सहज रूप से एक व्यक्ति कुछ भंगिमा बना कर बैठा है, व्यायाम के अभ्यास, कठिन आसन करता या आंख बंद कर ध्यान करता हुआ व्यक्ति। ये सब योग के हिस्से हैं मगर कोई कहे कि ये इकट्ठे या इनमें से कोई एक ही योग है तो शायद सही न होगा। शरीर, मन के इन अलग अलग अभ्यासों का महत्व इसलिए है कि ये व्यक्ति के शरीर, मन को साधते हैं ताकि व्यक्ति योग की उच्च अवस्था को प्राप्त कर सकें।
International Day of Yoga – श्री कृष्ण कहते हैं योगी और संन्यासी में कोई भेद नहीं है
श्री कृष्ण कहते हैं योगी और संन्यासी में कोई भेद नहीं है। योग के विभिन्न अभ्यास कर शरीर को निरोग बनाना और फिर मन को साध कर परम के साथ खुद को जोड़ लेना योग का असली उद्देश्य है। अभी सारा विश्व योग के वामन स्वरूप पर ही मोहित है जो रोगों को नियंत्रित, प्रबंधित और इनका निवारण कर देता है मगर इसका विराट रूप तो यह है कि योग हमें अपने स्वभाव में, स्वरूप में स्थित कर देता है।
शरीर के लाभ से आगे निकल जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति की कामना करें तो एक जन्म कम पड़ जायेगा
योग का शाब्दिक अर्थ है जुड़ना और इस रूप में देखे तो योग के परिणाम का जलवा आज सर्वत्र दिख रहा है। योग ने भिन्न भिन्न मत, संप्रदाय, विश्वास और भौगोलिक विषमताओं के बावजूद लगभग लगभग पूरी मानव जाति को जोड़ दिया है। योग वैसे तो इतना सहज और संक्षिप्त है कोई भी मात्र कुछ ही दिनों में अपने लिए जरूरी अभ्यासों में पारंगत हो सकता है,कुछ महीनो का प्रशिक्षण ले कर योग का शिक्षक हो सकता है लेकिन यदि कोई इसमें डूबना चाहे यानी शरीर के लाभ से आगे निकल जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति की कामना करें तो एक जन्म कम पड़ जायेगा।
International Day of Yoga – रोगों को परास्त कर कुंदन जैसा शरीर, मन पाने की यात्रा है योग
इस बिंदु से सिंधु की यात्रा है योग, वामन से विराट अस्तित्व को जानने की यात्रा है योग, रोगों को परास्त कर कुंदन जैसा शरीर, मन पाने की यात्रा है योग, स्वपोषण से ऊपर उठ जनकल्याण के निमित्त जीवन को आहूत करने की यात्रा है योग, अवसाद, विषाद, द्वंदो से ऊपर उठ नित्य आनंद की यात्रा है योग।