Places Of Worship Act 1991 के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 5 दिसंबर को सुनवाई होगी।
Places Of Worship Act 1991
मामला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच के सामने है। इन याचिकाओं में 1991 के इस कानून को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को अन्यायपूर्ण बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय के खिलाफ है। इसके रहते वह उन पवित्र स्थलों पर दावा नहीं कर सकते, जिनकी जगह पर विदेशी आक्रमणकारियों ने जबरन मस्ज़िद बना दी थी।
कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया था। इसके बाद पिछले साल 9 सितंबर को फिर जवाब मांगा लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने समय मांगा था।
Places Of Worship Act 1991 – कोर्ट के फैसले से वाराणसी स्थित ज्ञानवापी और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्म भूमि विवाद पर भी बड़ा असर पड़ सकता है।
इन दोनों धार्मिक स्थलों के अलावा कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल और इमारतें हैं जिनको लेकर भी आये दिन विवाद होते रहे हैं।
1991 का पूजा अधिनियम 15 अगस्त 1947 से पहले सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता है।
वह चाहे मस्जिद हो, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल। वे सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों का त्यों बने रहेंगे। उसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता।
