संगीत, सिनेमा और समाज – राज कपूर का अनोखा योगदान

विचार मंच

14 दिसम्बर का ही दिन था लेकिन आज से ठीक एक सौ साल पहले जब किस्सा ख्वानी बाजार पेशावर (ब्रिटिश भारत का एक शहर )की कपूर हवेली में रणवीर राज कपूर का जन्म हुआ था।

पी शीतल हर्ष

इनके दादा पेशावर के प्रसिद्द सेठों में से एक थे लेकिन इनके पिता पृथ्वी राज कपूर को अभिनय पसंद था। तत्कालीन भारत में तब कोलकाता की फिल्म इंडस्ट्रीज प्रथम स्थान पर थी दूसरे पर बॉम्बे पर लाहौर।

पृथ्वी राज कपूर अपने परिवार को लेकर कोलकाता आ गए। हाज़रा में उनका निवास स्थान बना और मिनर्वा थियेटर से जुड़े सिंघी बागान में रहने वाले भरतपुर के शर्मा जी से उनकी घनिष्ठता थी।

बाल राज कपूर का पढाई में दिल नहीं लगता था। ठीक अपने पिता की तरह उनकी दादा पृथ्वी राज जी को बेरिस्टर बनाना चाहते थे लेकिन अभिनेता बन गए।

ठीक उसी तरह जेवियर्स स्कूल का विद्यार्थी रणवीर राज कपूर बचपन से ही फिल्मो के शौकीन रहे। लगभग ८ वर्षो की उम्र में एक बंगाली फिल्म में बाल कलाकार के रूप में राज साहेब फिल्मो, में नज़र आये।

मिनर्वा थियेटर में आग लगी थियटर नष्ट हो गया। पृथ्वी राज कपूर बॉम्बे अपने परिवार को लेकर चले गए। राज साहेब ने जैसे तैसे ७ वि तक पढाई की।

फिल्मो में राज साहेब का रुझान देख पृथ्वी राज जी ने उन्हें फिल्म कंपनी में नौकरी लगा दी। बाद की कहानी सबको पता ही है।

कोलकाता और राज कपूर 

कहते है की तंग गली में मुसीबत से बीते बचपन को भी कोई भुला नहीं सकता वे गलियां मोहल्ले जीवन के साथी होते है।

राज कपूर ने अपने बचपन के शहर कोलकाता को कभी नहीं भुलाया उनकी एक फिल्म जागते रहो (बंगाली संस्करण एक दिन रात्रि ) की पूरी शूटिंग कोलकाता के करनानी मेंशन और सीआई टी बिल्डिंग में हुई।

मोती लाल राज कपूर नरगिस के आलावा सभी बंगाली फिल्म इंडस्ट्रीज के कलाकार थे उस फिल्म में। राम तेरी गंगा मैली का क्लाइमेक्स भी कोलकाता में हुआ और फिल्म का पहला सिन भी कोलकाता से ही था।

राज कपूर और उनके नवरत्न

राज कपूर सिर्फ एक अभिनेता ही नहीं थे बल्कि सिनेमा की हर विधा के ज्ञाता थे। वे संगीतज्ञ भी थे वे दार्शनिक भी थे।

उनकी टीम में मुकेश,नर्गिस शंकर जय किशन, हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र अहमद अब्बास बाबू भाई मिस्त्री बाद के वर्षो में वर्षो में संतोष आनंद रविंद्र जैन भी जुड़े।

दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार लेने से पहली रात राज साहेब ने अपना यह पुरुस्कार अपनी टीम को समर्पित हुए कहा था की इस टीम के बगैर राज कपूर राज कपूर नहीं।

शिक्षा

राज साहेब खुद ज्यादा नहीं पढ़े थे लेकिन शिक्षा के प्रति उनका विशेष झुकाव था इसलिए उन्होंने अपना पुणे के लोणी कोलाबार वाला फार्म हाउस (यहाँ सत्यम शिवम् सुंदरम की शूटिंग हुई थी ) क्षाविद डॉ विश्वनाथ डी कराड को दे दिया था, जहां आज ऍम ऍम आई टी पुणे है।

डॉ विश्वनाथ ने कपूर लगाव को सदियों ता जिन्दा रखने के लिए उस फार्म हाउस में कपूर विला को बनाये रखा और राज कपूर मेमोरियल की स्थापना की जहाँ कपूर साहेब से जुडी फिल्मो के पात्रो को माँ के पुतले बनाये गए है।

साथ ही बिच मेमोरियल में कपूर साहेब को श्रद्धांजलि स्वरूप उनकी समाधी जैसा बनाया है जहाँ राज कपूर अपने माता पिता के साथ शिव पूजन कर रहे है।

आर के फिल्म्स की फिल्म यात्रा 

राज कपूर ने पहली फिल्म आग निर्माण किया था इस फिल्म  निर्माण से पहले ही रिवा (मध्य प्रदेश ) के आई जी की पुत्री कृष्णा से उनका विवाह हो था। 

इस फिल्म में वे अपने साले प्रेमनाथ के साथ नज़र आये थे, आग के बाद  आह, और बरसात का निर्माण निर्देशन किया बरसात उस समय की सुपर डुपर रही थी।

सताइस साल की उम्र में  आवारा बनाई जिसने भारतीय सिनेमा का परचम पुरे विश्व में फैलाया  सोवियत रूस (आज इसके विभिन्न देशो में )राज कपूर और आवारा  लोगों में ज़िंदा है। 

 ‘आवारा’ ने इस सत्ताइस साल के नौजवान को उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया, जहाँ तक पहुँचने के लिए बड़े-से-बड़ा कलाकार लालायित हो सकता है।

‘आवारा’ ने ही राज साहेब को  अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की। यहाँ तक कि राज कपूर  पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तित्व बन गए सोवियत रूस में।

रूस और अनेक समाजवादी देशों में ‘आवारा’ को सिर्फ प्रशंसा ही नहीं मिली, वरन् वहाँ की जनता ने भी बेहद आत्मीयता के साथ इसे अपनाया। आज भी वहां की जनता आवारा हु गीत को गुनगुनाती रहती है और हर मिलने वाले गीत को गाने का अनुरोध करते है।

राज समाज में सन्देश वाहक के रूप में रहे है। जब टीबी एक खतरनाक बिमारी थी अब उन्होंने आह में टी बी मरीज की भूमिका की प्रेम विधवा विवाह हेतु प्रेरित किया।

जिस देश में गंगा बहती है में उस समय की समस्या डाकू का चित्रण किया जहाँ बगैर खून खराबे के डाकू गिरोह आत्म समर्पण कर देता है।

आज कल और आज में एक अधेड़ के जीवन की कशमश को दीखते हुवे निदान बताया  आम आदमी के लिए कालजई फिल्म श्री ४२० से बेहतर आज एक कोई फिल्म नहीं आई है।

राज कपूर के गीतों की दीवानगी

कोलकाता के बसंत मोहता, विजय ओझा और अन्य गायकों से मंच पर आज भी गीतों के रसिक राज कपूर के लिए मुकेश जी और मन्ना डे के गीतों की फरमाइश करते है।

मुंबई के एक कार्यक्रम में बसंत मोहता ने लागा चुनरी दाग  प्रस्तुत किया और उसके बाद वहां मौजूद खुद मन्ना डे ने उस गीत के लिए बसंत मोहता का सम्मान किया।

सरला बसंत कुमार बिरला के वैवाहिक वर्षगांठ के अवसर आयोजित कार्यक्रम में बसंत मोहता ने विजय ओझा से राज कपूर की संगम का गीत दोस्त दोस्त न रहा प्रस्तुत करने हेतु कहा।

राज कपूर के प्रसंशक और इस लेख के लेखक राज कपूर के रूप मे

राज कपूर को अपने जीवन का आदर्श मानने वाले इस लेख के लेखक का कहना है कि राज साहेब के लिए बने गीत व्यक्ति का जीवन सुगम बनाते है – एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल।

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