Bachh baras भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि (जन्माष्टमी के 4 दिन बाद) को मनाया जाता है। इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। बछबारस का पर्व राजस्थान में ज्यादा लोकप्रिय है। बछ बारस Govats dwadashi , बच्छ दुआ, बछवास आदि नामों से भी जाना जाता है।
Bachh Baras 2023 Date – बछबारस कब है?
ज्योतिष प्रभाकर डॉ राकेश व्यास ने बताया कि बछबारस (Bachh Baras 2023) इस वर्ष 11 सितंबर को मनाया जाएगा। द्वादसी तिथि 10 सितंबर की रात 9 बजकर 29 मिनट से प्रारम्भ हो रही है जो 11 सितंबर को रात 11:52 तक रहेगी। ऐसे में 11 सितंबर को ही बछ बारस मनाया जाएगा। पुत्रवती महिलाएं पुत्र के सुख और दीर्घायु होने की कामना करती हैं।
Bachh Baras पर सावधानी –
इस दिन गाय का दूध और उस दूध से बने पदार्थ जैसे दही, मक्खन, घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ तथा इनसे बने व्यंजन नहीं खाये जाते। भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है।
बछबारस पूजन विधि
बछबारस के दिन दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाकर फूल माला पहनाकर उनके सींगों को सजाना और उन्हें तिलक लगाना चाहिए।
इसके बाद गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने, मूंग, मोठ, बाजरे, मटर, चने के बिरवे, आदि खिलाना चाहिए। यदि गाय न हो तो मिट्टी से गाय बछड़े की आकृति बना कर पूजा की जाती है।
कुए के प्रतिक के तौर पर एक पाटे पर मिटटी से पाल (घेरा) बनाते है और उसके बीच में एक गोल मिटटी की बावडी बनाते है। फिर उसको थोडा दूध, दही, पानी से भर देते है।
हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर सुनी जाती है बछ बारस की कहानी व प्रचलित लोककथा
इसके बाद रोली, मोली, दक्षिणा चढाते है। इसके बाद हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर बछ बारस की कहानी व प्रचलित लोककथा सुनी जाती है।
बछबारस कथा
एक सास बहु थी। सास को गाय चराने के लिए वन में जाना जाना था। उसने बहु से कहा “आज बछ बारस है में वन जा रही हूँ तो तुम गेहू लाकर पका लेना और धान लाकर उछेड़ लेना।
बहू काम में व्यस्त थी। उसने ध्यान से सुना नहीं। उसे लगा सास ने कहा गेहूंला धानुला को पका लेना। गेहूला और धानुला गाय के दो बछड़ों के नाम थे। बहू को कुछ गलत तो लग रहा था लेकिन उसने सास का कहा मानते हुए बछड़ों को काट कर पकने के लिए चढ़ा दिया ।
सास ने लौटने पर पर कहा आज बछ बारस है, बछड़ों को छोड़ो पहले गाय की पूजा कर लेते हैं। बहु डरने लगी, भगवान से प्रार्थना करने लगी बोली हे भगवान मेरी लाज रखना। विनती सुन बछबारस माता को उसके भोलेपन पर दया आ गई।
हांड़ी में से जीवित बछड़ा बाहर निकल आया। सास के पूछने पर बहु ने सारी घटना सुना दी। और कहा भगवान ने मेरा सत रखा, बछड़े को फिर से जीवित कर दिया। इसीलिए बछ बारस के दिन गेंहू नहीं खाये जाते और कटी हुई चीजें नहीं खाते है। गाय बछड़े की पूजा करते है।
खोटी की खरी, अधूरी की पूरी ..
हे बछ बारस माता जैसे बहु की लाज रखी वैसे सबकी रखना।
पुत्र के तिलक लगाकर देतीं है नारियल
गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे लड्डू खिलाकर नारियल देकर आशीर्वाद देती हैं।
मान्यता
ऐसा माना जाता है की गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का, गाय में निवास करने वाले देवताओं और गौ माता का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली और सम्पन्नता बनी रहती है।