आज भैरव अष्टमी

धर्म - कर्म

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव की जन्मतिथि के रूप में मनाया जाता है। 16 नवंबर को शिव जी के अवतार भैरव बाबा का प्रकट उत्सव है।

भगवान शिव ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर भैरव के रूप में अवतार लिया था। शिव जी का ये अवतार प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए भैरव देव की पूजा सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए।

शाम को स्नान के बाद भैरव मंदिर में भगवान का श्रृंगार सिंदूर, सुगंधित तेल से करना चाहिए। लाल चंदन, चावल, गुलाब के फूल, जनेऊ, नारियल चढ़ाएं। तिल-गुड़ या गुड़-चने या इमरती का भोग लगाएं। काल भैरव का श्रृंगार खासतौर पर सिंदूर और चमेली का तेल से किया जाता है।

भैरव पूजा में धूप-बत्ती के साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाकर भैरव मंत्र का जप करना चाहिए। शनि और केतु, राहु के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए काल भैरव की आराधना होती है। अतः जिन जातकों की जन्मपत्रिका में शनि, मंगल, राहु तथा केतु आदि पाप ग्रह अशुभता के कारण हो तथा नीच गत अवस्था में शनि की साढ़े साती या ढैया से पीड़ित हैं। उन्हें इमरती मंगौड़ी के भोग के साथ फल, नारियल आदि भैरव जी को चढ़ाना चाहिए। वही भैरव अष्टमी के दिन शमी वृक्ष के नीचे लोहे के दीपक में सरसों का तेल भरकर दीप प्रज्वलित करना चाहिए।

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