आज नरसिंह चतुर्दशी (Narsingh Chaturdashi) है। भगवान विष्णु के दशावतारों में से नरसिंह भगवान का अवतार चतुर्थ अवतार है। इसे नृसिंह अवतार (Narsingh Avatar) भी कहते हैं। उनका आधा शरीर सिंह तथा आधा मानव का था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य अधर्म के प्रतीक दैत्य हिरण्यकश्यप का वध करना तथा अपने

भक्त प्रह्लाद की रक्षा करके उसे राज सिंहासन पर बिठाना था। भगवान विष्णु का यह अवतार (narsimha bhagwan) इतना ज्यादा विध्वंसक था कि स्वयं उनका भक्त प्रह्लाद भी इससे डर गया था। तब भगवान शिव को शरभ अवतार लेकर उन्हें शांत करवाना पड़ा था।
Narsingh Chaturdashi – जानिए पौराणिक कथा (narsimha bhagwan)
सतयुग में एक पराक्रमी दैत्य हिरण्यकश्यप हुआ था। उसने कई सैकड़ों वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अद्भुत वरदान प्राप्त किया था जिसके अनुसार उसका वध भगवान ब्रह्मा के बनाये किसी भी प्राणी से नही हो सकता था। इसके अनुसार वह न अपने घर के अंदर तथा ना ही बाहर, ना दिन में तथा ना ही रात में, ना भूमि पर तथा ना ही आकाश में, ना अस्त्र से तथा ना ही शस्त्र से, ना मनुष्य से तथा ना ही पशु से मारा जा सकता था। इस वरदान को पाकर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था तथा तीनों लोकों में उसे हराने वाला कोई नही था।
इसी वरदान के फलस्वरूप वह स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल लोक का राजा बन गया था। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया तथा विष्णु को मानने से मना कर दिया। स्वर्ग लोक से देवराज इंद्र को अपदस्थ कर दिया गया था तथा पृथ्वी लोक में भी अधर्म की स्थापना कर दी गयी थी। सब जगह धर्म का नाश होने लगा तथा ऋषि-मुनियों की हत्या होने लगी किंतु कहते हैं ना भगवान सर्वत्र विद्यमान होते हैं और हर किसी को अपनी शक्ति का अनुभव करवा ही देते हैं। जो हिरण्यकश्यप तीनों लोकों का राजा बना बैठा था और स्वयं को भगवान घोषित किये हुए थे, स्वयं उसी के घर में उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त निकला।
अब उस राजा की इससे बड़ी दुर्दशा क्या ही होगी कि जिसके भय से तीनों लोकों में लोग विष्णु का नाम लेने से डर रहे थे, उसी राजा का ही पुत्र दिन-रात विष्णु-विष्णु का नाम ही जपता थाजब वह केवल पांच वर्ष का था तब उसके पिता हिरण्यकश्यप के द्वारा उसे मारने के बहुत प्रयास किये गए। इन प्रयासों में प्रह्लाद को सांपों से भरे कारावास में फिंकवा देना, हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवाने का प्रयास करना, पहाड़ से नीचे खाई में फेंक देना, अस्त्रों से शरीर के टुकड़े करना, अग्नि में जलाने का प्रयास करना इत्यादि सम्मिलित है।
narsingh avatar – भगवान विष्णु ने लिया नरसिंह अवतार
आश्चर्य की बात यह थी कि जब-जब भी वह अपने पुत्र के वध करने का प्रयास करता तब-तब प्रह्लाद श्रीहरि का नाम जपने लगता। उसके बाद स्वयं भगवान विष्णु उसकी रक्षा करने आ जाते लेकिन किसी को दिखाई नही देते। फिर एक दिन हिरण्यकश्यप की भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार की सीमा समाप्त हो गयी और भगवान विष्णु ने भयंकर नरसिंह अवतार (Narsingh Avatar) लिया।
वैसे तो भगवान विष्णु नरम स्वभाव के और धैर्यवान थे। इसी कारण हर बार वे शांति से और बिना क्रोध के अपने भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा करते आये थे किंतु अपने छोटे से भक्त पर इस तरह के अत्याचार देखकर धीरे-धीरे उनका क्रोध बढ़ता जा रहा था। एक दिन वह क्रोध का घड़ा फूट गया व भगवान विष्णु के अत्यंत भयानक रूप नरसिंह अवतार का जन्म हुआ।
जब हिरण्यकश्यप के द्वारा प्रह्लाद को मारने के सभी प्रयास विफल हो गए तब उसने क्रोध में अपने पुत्र से पूछा कि यदि भगवान विष्णु हर जगह उपस्थित हैं तो क्या वह सामने वाले स्तम्भ में भी है। इस पर प्रह्लाद ने कहा कि श्रीहरि तो हर एक कण में उपस्थित हैं, इसलिये वह सामने वाले स्तम्भ में भी है। यह सुनकर हिरण्यकश्यप को क्रोध आ गया व उसने उस स्तम्भ को तोड़ डाला।
स्तम्भ के टूटते ही एक जोरदार दहाड़ सुनाई पड़ी तथा उसमे से भगवान विष्णु अपने नरसिंह अवतार (Narsingh Avatar) में बाहर निकले। उनका ऊपर का आधा शरीर सिंह का तथा नीचे का आधा शरीर मनुष्य (narsimha bhagwan) का था। वह जोर-जोर से फुंफकार रहे थे जिस कारण आसपास हाहाकार मच गया। सभी सैनिक उनके इस भयानक रूप को देखकर आतंकित हो उठे।
नरसिंह अवतार (Narsingh Avatar) ने हिरण्यकश्यप पर भीषण प्रहार किया तथा उसे खींचकर उसके भवन की दहलीज पर ले गए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपने जांघों पर बिठा लिया तथा अपने बड़े-बड़े नाखूनों की सहायता से उसका पेट चीरकर आंतड़ियाँ बाहर निकाल दी। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया।
आखिर भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को मिले वरदान को कैसे किया विफल
आखिर भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान को विफल कैसे किया? आइये जाने।जब भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया उस समय ना दिन था व ना ही रात, अपितु संध्या का समय था; उन्होंने उसे ना भवन के अंदर मारा तथा ना ही बाहर अपितु उसकी दहलीज पर मारा; उन्होंने ना उसे भूमि पर मारा तथा न ही आकाश में अपितु अपनी गोद में बिठाकर मारा, ना ही उन्होंने अस्त्र से मारा तथा ना ही शस्त्र से अपितु अपने नाखूनों से मारा। इसके साथ ही भगवान नरसिंह का अवतार (Narsingh Avatar) ना ही मानव का था, ना पशु का तथा न ही किसी सुर-असुर का; ना ही उनकी उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा ने की थी। इस प्रकार उन्होंने हिरण्यकश्यप का वरदान विफल करके उसका वध कर दिया।
हिरण्यकश्यप का वध करने के पश्चात भी जब भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार (Narsingh Avatar) शांत नही हुआ तो सभी जगह भय व्याप्त हो गया। नरसिंह भगवान अभी भी अत्यधिक क्रोध में थे जिससे सभी देवता व दैत्य चिंता में पड़ गए। तब भक्त प्रह्लाद साहस करके उनके पास गए तथा उन्हें शांत करवाने का प्रयास किया। भक्त प्रह्लाद को अपने सामने देखकर भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हो गया तथा उन्होंने उसे बहुत प्रेम दिया। इसके पश्चात उन्होंने प्रह्लाद को अपने पिता का उत्तराधिकारी बनाया तथा पुनः श्रीहरि में समा गए।
कहाँ हुआ Narsingh Avatar
लगभग हम सभी जानते है कि श्री कृष्ण मथुरा मे श्री राम आयोध्या मे अवतरित हुए लेकिन श्री नरसिंह देव के लिए अनभिज्ञ हो जाते है। भारत मे दो स्थान ऐसे है जहा नरसिंह देव के खंभ फाड़ अवतरित होने का दावा किया जाता है। एक है बुंदेलखंड मे एरच और दूसरा बिहार मे पूर्णिया एरच कभी असुरराज हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करता था। इतिहास में इस बात के प्रमाण भी हैं कि सतयुग में इस एरच को ही ‘एरिकच्छ’ के नाम से जाना जाता था।
एरच के पास बेतवा नदी के किनारे डिकोली गाँव है। कभी इस गाँव की जगह डिंकाचल पर्वत हुआ करता था। इसी पर्वत से प्रह्लाद को वेतवा नदी में फेंकने का प्रयास किया गया था लेकिन वे भगवान विष्णु के आशीर्वाद की वजह से बच गए। बाद में प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर आग में जलाकर मारने का प्रयास किया। लेकिन ये भी संभव नहीं हो पाया और वरदान प्राप्त होने के बावजूद इस आग में खुद होलिका ही जल गई।
कानपुर झांसी मार्ग पर बेतवा नदी के किनारे बसा है एरच जहा एक प्राचीन खण्डहर नुमा किला है जहा कोई आता जाता नही कहा जाता है कि यह हिरणकश्यप का किला है और यही श्री नरसिंह देव प्रकट हुए थे, यहाँ प्रह्लाद का टीला भी है जहा होली का दहन हुआ था वह पहाड़ी चोटी भी है जहा से प्रह्लाद को नदी मे गिराया गया था। इस इलाके में पुराने महल के भग्नावशेष भी मिलते हैं, जो हिरण्यकश्यप के महल के बताए जाते हैं। खुदाई के दौरान यहाँ हिरण्यकश्यप काल की शिलाएँ और होलिका की गोद में बैठे प्रह्लाद की मूर्तियाँ भी मिली हैं, जो ये साबित करती हैं कि होलिका, हिरण्यकश्यप का संबंध इसी इलाके से रहा है।
पूरे बुंदेलखंड मे नरसिंह देव के मन्दिर है घर घर नरसिंह देव की पूजा होती है, यहाँ कहा जाता है कि हिरणकश्यप के वध के बाद जब भक्त प्रह्लाद को देत्य राज की गद्दी पर बैठा कर राजा बनाया गया तो दैत्य समाज ने प्रह्लाद को पिता हत्त्या का कारण माना और राजा स्वीकार नही किया पिता की मृत्यु और समाज द्वारा निंदित् होने से दुःखी प्रह्लाद पश्चिमी आर्यवृत के मुल्तान चले गए और वहाँ एक टीले को निवास बना वही हरि स्मरण करने लगे। वह टीला आज भी मौजूद है।
बिहार के पूर्णिया जिले में वह मंदिर है, जहां पर माना जाता है नृसिंह भगवान का अवतार हुआ था। यहां वह स्तंभ आज भी मौजूद है जिसमें से नृसिंह भगवान प्रकट हुए थे। ऐसी मान्यता है कि बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में भगवान नृसिंह ने अवतार लेकर राक्षस राज हिरण्यकश्यप का वध किया था। यही वह स्थान है जहां पर नृसिंह भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से चीर दिया था। यहां हर साल होलिका दहन का उत्सव भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
इस मन्दिर मे एक खम्भा भी है जिसे माणिक्य खंभ कहा जाता है ऐसी मान्यता है कि नर्सिह देव इसी से अवतरित हुए थे।
उत्तर प्रदेश के हरदोई को हिरण कश्यप का राज्य भी माना जाता है हिरण कश्यप हरि का द्रोही था इसलिए पहले हरदोई को हरिद्रोही कहा जाता उच्चारण परिवर्तन से हरदोही हो गया। नरसिंह मंदिर (इटावा) भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का उत्तर भारत का प्रमुख मंदिर है। इटावा में स्थित इस मंदिर को उसकी संपदा के अनुसार उत्तर का पद्मनाभ मंदिर भी कहा जाता है। इनमें बेशकीमती आभूषण और कई जिलों में फैली अचल संपदा है। कुछ लोग इस मंदीर को भी नरसिंह अवतार स्थल मानते है। महाराष्ट्र के पुणे सहित कई शहरों सहित आंध्र, तेलांगना मध्य प्रदेश, राजस्थान के बीकानेर जोधपुर उदयपुर मे नर्सिह देव के कई आदि मंदीर है जिनकी अपनी अपनी मान्यता है।
(यहां लेख में दी गई जानकारी लेखक द्वारा पौराणिक कथाओं के आधार पर दी गई है।)
