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पहले भी हुई है आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की कोशिश

विचार मंच
ajay p bothra
अजय पी बोथरा
मोदी सरकार ने सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। इस फैसले के अंतर्गत आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण लोगों को सरकारी सुविधाओं में 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। जबकि अभी आरक्षण
– अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत
– अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत
– अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत
-कुल आरक्षण है 49.5 प्रतिशत
क्या कहता है संविधान: संविधान के मुताबिक आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, किसी व्यक्ति विशेष को नहीं आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है। गौरतलब है कि इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा चुका है।
बता दें कि अप्रैल 2016 में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। सरकार के फैसले के मुताबिक 6 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाने की बात की गई थी। लेकिन अगस्त 2016 में हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था।
1991 में मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के बाद पूर्व पीएम नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया था और 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी। हालांकि 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था।
चुनावी माहौल में संविधान संसोधन की संभावना कम ही लगती है। और अब सवाल ऐसे में ये उठता है कि सरकार, सरकारी सुविधाओं और शिक्षा में इस आरक्षण को किस तरह लागू करती है।
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