दिखावे की दुनिया बनता सोशल मीडिया

विचार मंच

मयंक व्यास

आज का समय सोशल मीडिया का है। हर उम्र के लोग किसी न किसी तरीके से सोशल मिडिया पर अपना समय बिताते हैं। बात हो युवाओं की तो सबसे ज्यादा समय ही सोशल मीडिया पर युवा बिताते हैं। पहले लोग सोशल मिडिया पर सिर्फ टाइमपास ही करते थे लेकिन ऑनलाइन के ज़माने में सोशल मिडिया साधन बन गया है अपने कारोबार को बढ़ाने का, प्रसिद्धि पाने का, कमाई का। कुछ लोग इससे बहुत कुछ लाभ भी उठा रहें है। चाहे उसपर कंटेंट डालकर या किसी और के कंटेट से कुछ सीखकर।

मृग मरीचिका

इसीबीच में एक ऐसा वर्ग भी है जो इन प्लेटफॉर्म्स को दिखावे की दुनिया बना चूका है। यह दिखावा हर क्षेत्र का हो सकता है। चाहे वो खुद के जीवन को बहुत अच्छा दिखाने का हो या खुद को हर क्षेत्र में पूर्ण दिखने का। सोशल मीडिया पर एक गजब की मृग मरीचिका है जहाँ कुछ लोग ऐसे भी है जो इसी सोशल मिडिया पर दूसरों की जिंदगी को खुद की जिंदगी से बराबरी कर स्वयं को डिप्रेशन में धकेल लेते है।

बहुत से युवाओं में ये देखा गया है कि किसी भी सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म पर अपने दोस्त-यार, नाते- रिश्तेदार या किसी की भी प्रोफ़ाइल में उनकी पोस्ट को देखकर वो ये सोचने लगते हैं कि लोग तो मजे कर रहें हैं पर मैं नहीं कर पा रहा हूँ। जबकि सच्चाई यह भी देखि गई है कि सोशल मिडिया पर मजे की लाइफ दिखाने वालों के जीवन में लाखों परेशानियों ने डेरा जमाया हुआ है लेकिन दिखावा जरुरी है। पोस्ट करने वाला सच में किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा है वह कोई नहीं जानता लेकिन पोस्ट देखकर कुछ लोग खुद की मानसिक स्थिति बिगाड़ लेते है।

यही झूठ हमेशा अच्छा लगने लगता है। जबकि अधिकतर मामलों में न तो सुंदरता सच्ची है और न ही तथ्य जो हम देखतें है, लेकिन उन्हें पढ़ने और देखने वाला

समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जो ऐसे लोगों को अक्सर फालो करने लगता है। दूसरों की लाइफस्टाइल से प्रभावित होकर लोगों के अंदर एक असंतोष की भावना पैदा होने लगती हैं जो गृह क्लेश को जन्म देता है और कई बच्चों में हीन भावना बढ़ने लगती है। कई बच्चे रोज की अनियंत्रित जरूरतों को पूरा करने के लिए गलत संगत में भी पड़ जाते हैं।

इस दिखावे में लोग अपने माता पिता से भी गलत व्यवहार करने लग जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दूसरों की तरह अच्छी खासी ऐशो आराम की जिंदगी उन्हें नहीं मिलने का कारण उनके माता ही है। इसलिए सोशल मीडिया द्वारा उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार के सम्मोहन, लत और खुद को दूसरे के बराबर करने की बीमारी का समाधान परिवार और समाज के स्तर पर जागरूकता के द्वारा ही हो सकता है। हमे यह समझना ही होगा की सोशल मिडिया पर दिखने वाल सब कुछ सच हो यह जरुरी नहीं है।

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