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तृणमूल ने हिंदी प्रकोष्ठ की संरचना को दिया औपचारिक रूप, भाजपा ने कहा: नौटंकी

बंगाल
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने राज्य के सभी हिंदी भाषी लोगों को एक साथ लाने के लिए विशेष पहल शुरू की है। पार्टी ने हिंदी भाषियों के लिए एक खुला मंच बनाने के उद्देश्य से हिंदी प्रकोष्ठ की संरचना को सोमवार को औपचारिक रूप दिया। इस हिंदी प्रकोष्ठ में तृणमूल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य दिनेश त्रिवेदी को चेयरमैन एवं पूर्व सांसद विवेक गुप्ता को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। 
प्रकोष्ठ के चेयरमैन त्रिवेदी ने कहा कि हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सभी भाषाओं को फूलों के गुलदस्ते के रूप में देखती हैं और राज्य ने विभिन्न प्रकार की भाषा बोलने वाले लोगों के लिए अपने दरवाजे खुले रखे हैं। त्रिवेदी ने कहा कि प्रकोष्ठ जमीनी स्तर पर हिंदी को मजबूत करेगा। वहीं, नवनियुक्त अध्यक्ष विवेक गुप्ता ने कहा कि इस प्रकोष्ठ में त्रिस्तरीय संरचना होगी। इसमें राज्य स्तरीय समन्वय समिति, जिला स्तरीय समिति व ब्लॉक स्तरीय समिति शामिल है। उन्होंने कहा कि हिंदी प्रकोष्ठ का मुख्य कार्य बंगाल में हिंदी शिक्षा, संस्कृति, समुदाय के समग्र कल्याण को और मजबूत बनाने की दिशा में सक्रिय रूप से प्रयास करना है। इससे हिंदी समुदाय के लोगों का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा। उनके सुझाव को अहम जगह मिलेगी।
दूसरी ओर, भाजपा के बैरकपुर के सांसद एवं प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष अर्जुन सिंह ने कटाक्ष करते हुए कहा कि तृणमूल के पैर के नीचे की जमीन अब खिसक चुकी है। वह अपनी सरकार बचाने के लिए छटपटा रही है और चुनाव के छह माह पहले हिंदी भाषियों को लुभाने के लिए प्रकोष्ठ का गठन कर नौटंकी किया है।
उन्होंने कहा कि जब वह तृणमूल में थे उस समय भी तृणमूल का हिंदी प्रकोष्ठ बना था और ममता बनर्जी ने हिंदी प्रकोष्ठ की कमेटी भी बनने नहीं दी थी। ऐसे में यह कैसे आशा कर सकते हैं कि तृणमूल का नया हिंदी प्रकोष्ठ हिंदी भाषियों के लिए काम करेगा। 
 उन्होंने प्रकोष्ठ में चेयरमैन व अध्यक्ष दो पद बनाये जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह तृणमूल जैसी पार्टी में ही हो सकता है कि संगठन का चेयरमैन भी होगा और अध्यक्ष भी। वैसे पूरी पार्टी में ऐसे ही चलता है। उन्होंने तृणमूल के राज्यसभा के सांसद दिनेश त्रिवेदी को प्रकोष्ठ का चेयरमैन बनाये जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि त्रिवेदी को पहचानता कौन है? वह कब से हिंदी भाषियों के नेता हो गये? 
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