ध्यान परम तत्व से जोड़ता है- योगाचार्य राजेश व्यास

सामाजिक

सनलाइट। ध्यान की सतत दीर्घकालिक साधना से साधक स्वयं के स्वरूप को पहचानने, उसमे स्थापित होने और परम तत्व से जुड़ने में सफल हो जाता है। ईश्वर का अंश होने के नाते जीव चेतन, सहज, अमल, सुख की राशि और अविनाशी हैं।

 

शरीर सदैव मृत्यु में ही रहता है। गर्भावस्था मरती है तो बालक जन्म लेता है, बाल्यावस्था मरती है तो किशोरावस्था, किशोरावस्था मरती है तो यौवन, यौवन मरता है तो वृद्धावस्था, वृद्धावस्था मरती है तो देहान्तरण आता है। गर्भ में आते ही शरीर मृत्यु के पल पल करीब जाना शुरू कर देता है पर जीव अविनाशी है। इसका किसी भी काल मे नाश नही है।

 

ध्यान से ही हम सुनते और देखते भी है। हमने अनुभव किया है कि आँखे खुली हैं पर हम दृश्य नही देख रहे होते।कोई आवाज देता है पर हम सुन नहीं पाते। पूछने पर कहते है ध्यान कही और था। इसी तरह ध्यान की साधना से हम भीड़ में रह कर भी अन्दर से एकांत का आनंद ले सकते है। कोलाहल में रहकर भी शांति का अनुभव कर सकते है। यह बात वर्चुअल ध्यान सत्र में कही योगाचार्य राजेश व्यास ने।

 

व्यास ने श्री कृष्ण योग ट्रस्ट द्वारा फेसबुक पर आयोजित लाइव प्रसारण में निर्देशित ध्यान का अभ्यास कराया। व्यास ने बताया कि ध्यान के आध्यात्मिक लाभ के अलावा शारीरिक लाभ भी अनुपम है। एड्रीनलीन का स्राव रुक जाता है, स्ट्रेस हार्मोन्स का स्राव कम हो जाता है, दिमाग की गतिविधिया कम हो जाती है, ह्रदय की धड़कन कम हो जाती है, मन शांत हो जाता है। फलतः शरीर हल्का, ऊर्जा से भरपूर और स्वस्थ महसूस करता है। ट्रस्ट द्वारा ध्यान सत्रो का समय समय पर आयोजन कर और प्रत्येक शनिवार एवम रविवार को वर्चुअल योग सत्रो का आयोजन कर मानव सेवा में योगदान दिया जा रहा है।

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