राजस्थान स्थापना दिवस विशेष : अपने सुनहरे इतिहास में अनेकों शौर्य गाथाओं को समेटे हुए है राजस्थान

राजस्थान

राजस्थान दिवस या राजस्थान स्थापना दिवस आज यानी 30 मार्च को मनाया जाता है। क्षेत्रफल के मामले में राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य के बड़े हिस्से में थार रेगिस्तान है, जिसको ग्रेट इंडियन डेजर्ट के नाम से भी जाना जाता है।

राजस्थान अपने सुनहरे इतिहास में अनेकों शौर्य गाथाओं के समेटे हुए है

बालू के टीलों, रेगिस्तान और चट्टानों की धरती राजस्थान अपने सुनहरे इतिहास में अनेकों शौर्य गाथाओं के समेटे हुए है। यहां के भव्य महलों, अभेद्य किले, यहां की संस्कृति और त्योहार विश्व प्रसिद्ध हैं।

 

राजस्थान का इतिहास स्वाभिमान से भरा है. समय-समय पर यहां चौहान, परमार, राठौड़, गहलोत वंशों का राज रहा है। मेवाड़, मारवाड़, जयपुर, बूंदी, कोटा, भरतपुर और अलवर बड़ी रियासतें थीं। मुगल और बाहरी आक्रांताओं के कई आक्रमणों ने धोरों के इतिहास को शौर्य गाथाओं से भर दिया।

तराइन, रणथंभौर, चित्तौड़, खानवा से लेकर हल्दी घाटी जैसे कई ऐतिहासिक युद्ध भी इस धरा पर लड़े गए

स्वाभिमान की जंग में पृथ्वीराज और महाराणा प्रताप से लेकर राणा सांगा, राणा कुंभा जैसे शूरवीरों ने इस इतिहास को सहेजे रखा। वहीं तराइन, रणथंभौर, चित्तौड़, खानवा से लेकर हल्दी घाटी जैसे कई ऐतिहासिक युद्ध भी इस धरा पर लड़े गए। हर वर्ष के तीसरे महीने में 30 तारीख को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 

 

इस दिन राजस्थान के लोगों की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा बलिदान को नमन किया जाता है। यहां की लोक कलाएं, समृद्ध संस्कृति, महल, व्यंजन आदि एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। इस दिन कई उत्सव और आयोजन होते हैं जिनमें राजस्थान की अनूठी संस्कृति का दर्शन होता है।

भाषा की मान्यता को लेकर अलग-अलग संगठन समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं

रंगीलो राजस्थान में ना केवल अनेक लोक नृत्य, व्यंजन बल्कि अनेकों भाषाओं के मिश्रित समूह को राजस्थानी भाषा का नाम दिया गया है। राजस्थान की खासियत भी यही है कि यहां पर हर थोड़ी दूरी पर भाषा का अंदाज बदलता है। इस भाषा में विपुल मात्रा में लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी आदि उपलब्ध है। हालांकि इस भाषा को संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है. इस कारण इसे स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता है। भाषा की मान्यता को लेकर अलग-अलग संगठन समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं।

“राजाओं का स्थान” – राजस्थान

इसे पहले इसे राजपूताना के नाम से जाना जाता था तथा 19 देशी और 3 चीफशिप्स रियासतों को मिलाकर यह राज्य बना तथा इसका नाम “राजस्थान” किया गया जिसका शाब्दिक अर्थ है “राजाओं का स्थान” क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व यहां कई राजा-महाराजाओं ने राज किया।

राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में हुआ

राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में हुआ। इसकी शुरुआत 18 अप्रैल 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली रियासतों के विलय से हुई। विभिन्न चरणों में रियासतें जुड़ती गईं तथा अंत में 30 मार्च 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों के विलय से “वृहत्तर राजस्थान संघ” बना और इसे ही राजस्थान स्थापना दिवस कहा जाता है। इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की सक्रिय भूमिका रही।

 

  • 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर ‘मत्स्य संघ’ बना. धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख और अलवर राजधानी बनी.
  • 25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ और शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना.
  • 18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय. नया नाम ‘संयुक्त राजस्थान संघ’ रखा गया. उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने.
  • 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था. यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है.
  • 15 अप्रेल, 1949 को ‘मत्स्य संघ’ का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया.
  • 26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।
  • आबू व देलवाड़ा को बम्बई प्रान्त में मिलाने के कारण राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई जिससे छह वर्ष बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय इन्हें वापस राजस्थान को देना पड़ा।
  • राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1 नवम्बर, 1956 को तत्कालीन अजमेर मेरवाड़ा राज्य को भी राजस्थान में विलीन कर दिया गया।
  •  भारत सरकार द्वारा गठित राव समिति की सिफारिशों के आधार पर 7 सितम्बर, 1949 को जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी बनी।
Share from here