लक्ष्मी जी के साथ भगवान् विष्णु की पूजा नहीं होती है, वरन् गणेश जी की पूजा होती है। कभी आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों होता है? शास्त्रों में कहा गया है कि जहां पर बुद्धि होता है, ज्ञान होता है, वहीं पर लक्ष्मी यानी धन का सही उपयोग होता है।
गणेश जी ज्ञान और बुद्धि के भंडार हैं और माता लक्ष्मी धन-धान्य देने वाली। गणेश जी और लक्ष्मी जी की साथ पूजा करने के बारे में अलग-अलग पौराणिक कथाएं और कारण हैं।
आज आपको इससे जुड़ी एक कथा के बारे में बताते हैं
एक समय की बात है, वैकुण्ठ धाम में भगवान् विष्णु एवं माता लक्ष्मी विराजमान होकर आपस में वार्ता कर रहे थे। माता लक्ष्मी श्रीहरि से कह रही थीं कि किस प्रकार वे दुनिया में सबसे अधिक पूजनीय एवं श्रेष्ठ हैं। उनकी कृपा जिस पर हो जाती है, वही त्रिलोकों के सभी सुखों को पा लेता है।
लक्ष्मी को इस प्रकार अपनी प्रशंसा करते हुए देखकर भगवान् विष्णु ने उनके अहं भाव को कम करने के लिए कहा कि “तुम सर्वसम्पन्न होते हुए भी आज तक मातृसुख प्राप्त नहीं कर पायी हो। समस्त लोकों में जो नारी मातृत्व सुख को प्राप्त नहीं कर पाए, उसके लिए त्रिलोकों के समस्त ख महत्त्वहीन होते हैं।”
भगवान् विष्णु की उक्त बात सुनकर माँ लक्ष्मी को अत्यन्त दुःख हुआ। वे उसी समय अपनी प्रिय सखी माता पार्वती के पास गईं एवं अपनी पीड़ा को बताया।
माँ पार्वती ने लक्ष्मी जी की पीड़ा को सुनकर उनसे कहा कि “मैं तुम्हारी किस प्रकार से सहायता कर सकती हूँ?” तब माँ लक्ष्मी बोलीं कि “तुम्हारे दो पुत्र हैं, तुम यदि एक पुत्र मुझे दे दो, तो भी तुम्हारे पास एक पुत्र विद्यमान रहेगा और मुझ पर भी जो वंध्यत्व का दोष लगा है, वह सदैव के लिए मिट जाएगा। ऐसी स्थिति में तुम्हीं मेरी सहायता कर सकती हो।”
यह सुनकर माँ पार्वती बोलीं “मेरे दो पुत्र हैं, कातिर्केय तथा गणेश। कातिर्केय तो षडानन है और द्वितीय पुत्र गणेश बहुत शरारती है। सु अब तुम ठहरी चंचला, तुम किस प्रकार मेरे दोनों पुत्रों में से किसी एक को भी संभाल पाओगी?”
ऐसा सुनकर माँ लक्ष्मी ने पार्वती जी से कहा “मैं तुम्हारे पुत्रों को अपने हृदय से भी अधिक स्नेह के साथ रखूँगी। चाहे बड़ा पुत्र कार्तिकेय हो अथवा छोटा पुत्र गणेश। मैं दोनों की ही अच्छी तरह से देखभाल कर सकती हूँ।वैकुण्ठधाम के सभी सेवक रात-दिन उनकी सेवा में लगे रहेंगे, अत: दोनों में से किसी एक को दत्तक पुत्र के रूप में मुझे प्रदान कर दो।”माँ पार्वती अपने दोनों पुत्रों की आदतों से भली-भाँति परिचित थीं, अतः उन्होंने भगवान् गणेश को लक्ष्मी देवी के दत्तक पुत्र के रूप में देना स्वीकार कर लिया।
ऐसा सुनकर माता लक्ष्मी ने पार्वती जी से कहा कि “आज से मेरी सभी सिद्धियाँ, सुख-सम्पत्तियाँ मैं अपने पुत्र गणेश को प्रदान करती हूँ एवं मेरी पुत्री के समान प्रिय ऋद्धि और सिद्धि जो कि ब्रह्मा जी की पुत्रियाँ हैं, उनसे श्रीगणेश के विवाह करने का वचन देती हूँ। मैं गणेश की प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करूँगी।
सम्पूर्ण त्रिलोकों में जो व्यक्ति श्रीगणेश की पूजा नहीं करेगा और उनकी निन्दा करेगा, मैं उससे कोसों दूर रहूँगी। जब भी मेरी पूजा की जाएगी, तो साथ में गणेश का पूजन अवश्य होगा। जो व्यक्ति मेरे साथ श्रीगणेश का पूजन नहीं करेगा, वह कभी भी श्री अर्थात् मुझे प्राप्त नहीं कर पाएगा।”
यह वचन सुनकर माता पार्वती अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपने पुत्र गणेश को लक्ष्मी जी को सुपुर्द कर दिया, अतः दीपावली पूजन पर अथवा लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश जी का पूजन भी अवश्य होता है।