Aligarh Muslim University (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है।
Aligarh Muslim University
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों की एक राय हैं। उन्होंने कहा कि मैंने बहुमत लिखा है जबकि 3 जजों की राय अलग हैं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी असहमति लिखी है। इस तरह से यह फैसला 4:3 से आया है।
हालांकि, इस फैसले में विकसित सिद्धांतों के आधार पर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से निर्धारित करने का काम तीन जजों की बेंच पर छोड़ दिया है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था।
बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ रखा गया। एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया।
एक फरवरी को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू एक्ट में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया, ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया।
प्रतिष्ठित संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। एएमयू एक्ट, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है।
जबकि 1951 के संशोधन के जरिए विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को खत्म करने का प्रावधान किया गया।