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प्राण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार – किरण व्यास

स्वास्थ्य
kiran vyas
किरण व्यास

प्राणों का आधार यानि प्राणायाम। अष्टांग योग में से एक प्राणायाम, इसका महत्यपूर्ण स्तंभ है। बिना खाये हम कई महीनो तक जीवित रह सकते हैं बिना जल ग्रहण किये भी कई हफ्ते जीवित सकते हैं किन्तु बिना प्राण के कुछ मिनट से ज्यादा जीवित नहीं रह सकते। प्राण ही पॉँच तत्वों में वह तत्व है जो एक जीवित शरीर एवं मृत शरीर में फर्क करता है।

प्राण घट में है तबतक हम जीवित है और जिस क्षण प्राण ने हमारा साथ छोड़ा हम अपने नाम को खो देते है फिर यह शरीर बॉडी या लाश कहलाता है। कहते हैं प्राण ही गुरु है, प्राण ही जीवन है और प्राण ही ब्रह्म है। जबतक यह शरीर में है चाहे हम सौ वर्ष से भी ज्यादा के हो जाये, शरीर की त्वचा पर झुर्रियां आ जाएं, पर हमारा शरीर नष्ट नहीं होता, पर बाकी के चार तत्व के शरीर में रहते हुए भी प्राण ने जिस क्षण साथ छोड़ा अगले ही क्षण से रासायनिक परिवर्तन शुरू हो जाते हैं और शरीर क्षय होने लगता है।

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है सर्वत्र प्राण की ही सत्ता है। शरीर के तीन दोषों वात, पित्त और कफ में पित्त और कफ तथा शरीर की अन्य धातुएँ स्वयं शरीर में आवागमन नहीं कर सकती, इन्हें वायु ही यत्र -तत्र ले जाता हैं। इसलिए प्राण ही सबसे बलवान है। उपनिषदों में प्राण को ब्रह्म कहा गया हैं। चरैवेति -चरैवेति यानि चलते रहता है। शरीर की बाकी सब कर्मेन्द्रियां जब सो रही होती है तब भी प्राण अपना कार्य करता रहता है, सोता नहीं और यदि प्राण ने कार्य बंद कर दिया तो फिर जीवन भी नहीं रहता।

प्राण के कारण ही इस शरीर का अस्तित्व है। प्राण की अदृश्य शक्ति ही सर्वत्र कार्य कर रही है। आँखों में देखने की शक्ति, नाक से सूंधने की शक्ति, कानों से सुनने की शक्ति और शरीर की शक्ति प्राण से ही है। इसलिए प्राण की शरण लेना हमारा पुनीत एवं सर्वोच्च कार्य है। कार्य भेद एवं स्थान भेद की दृष्टि से हमारे शरीर में पंच प्राण – प्राण, अपान, उपान, समान, व्यान एवं पंच उपप्राण होते हैं – देवदत्त, नाग, कृकल, कूर्म एवं धनंजय और ये सभी अलग -अलग कार्य के सम्पूर्ण होने के करक हैं। प्राणायाम के बारे में जैसे इसकी विधि, लाभ, रोगों को ठीक करने की क्षमता, मन की एकाग्रता में इनका योगदान और ईश्वर प्राप्ति में समाधि तक मनुष्य को पहुँचाने में प्राण एवं प्रणायाम के योगदान को जानने से पहले यह पृष्टभूमि, इसके महत्व को जानना जरुरी है जो उपरोक्त विवरण से सहज ही जान पड़ता है।

(यह लेख हमारे “सनलाइट योग विशेषांक” से लिया गया है।)

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