
Shivratri शब्द के दो भाग हैं। शिव से तात्पर्य है परम पुरुष ओर रात्रि से अभिप्राय है प्रकृति। वेदों में शिव को रूद्र कहा गया है।
Shivratri
उपनिषद का कथन है कि :-
शिव नर तो उमा नारी, शिव ब्रह्मा तो उमा सरस्वती,
शिव विष्णु तो उमा लक्ष्मी शिव लिंग रूप तो उमा पीठ (अर्घा) है।
संसार में जितने पुल्लिंग प्राणी है वे सब महेश्वर शिव के प्रतिरूप हैं। तथा स्त्रीलिंग प्राणी है वे सभी उमा पार्वती के स्वरूप हैं।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर कोहिमा तक हर जगह शिव के भक्तों की बहुतायत है । इसीलिए Shivratri का त्यौहार भारत के कोने कोने में मनाया जाता है।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव मानव जाति के बहुत निकट आ जाते हैं। लोग पूरी रात जागरण कर और कई धार्मिक अनुष्ठान कर शिव के सानिध्य में रहना चाहते हैं।
वसंत ऋतु में जब Shivratri आती है, तब भगवान शिव प्रसन्न होकर विहार करते हैं तो समुचित सृष्टि पल्लवित और पुष्पित होने लगती है।
शिव शंकर, शंभू यह तीन उनके मुख्य नाम है और क्रमशः तीनों का अर्थ है, कल्याण की जन्मभूमि, संपूर्ण रूप से कल्याणमय, मंगलमय और परमशांतमय।
शिव दिग्वसन होते हुए भी भक्तों को अतुल ऐश्वर्य और भोग देने वाले हैं, अनंत राशियों के अधिपति होते हुए भी भस्मविभूषण, श्मशान निवासी कहे जाने पर त्रिलोक्याधिपति, योगाधिराज होते हुए भी अर्धनारीश्वर, अज होते हुए भी अनेक रूपों में आविर्भुत, अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त तथा सबके कारण होते हुए भी अकारण है।
ज्ञान वैराग्य तथा साधुता के परम आदर्श हैं शिव, शास्त्रों में उनकी उपासना भी निर्गुण, सगुण, लिंगविग्रह तथा प्रतिमा विग्रह में परिकरसहित अनेक प्रकार से निर्दिष्ट है।
Shivratri – भगवान शिव का एक विशिष्ट रूप लिंग स्वरूप भी है जिनमें ज्योतिर्लिंग, स्वयंभूलिंग, नर्मदेश्वर अन्य रत्नादि तथा धात्वादि लिंग एवं पार्थिवादि लिंग है।
Shivratri – ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव, सद्य्योजात यह भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां है। यही भगवान के पांच मुख कहे जाते हैं।
Shivratri – शिव पुराण के अनुसार शिव की प्रथम मूर्ति ईशान क्रीडा, दूसरी तत्पुरुष तपस्या, तीसरी अघोर लोकसंहार, चौथी वामदेव अहंकार की अधिष्ठात्री है और पांचवी ज्ञान प्रदान होने के कारण सद्वस्तुयुक्त संपूर्ण संसार को आच्छन्न कर रखती है।
भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है और इनका स्थान उत्तर पूर्व (उर्ध्व) दिशा मुख में होता है इसलिए घर में भी इसी दिशा को मंदिर या पूजा स्थान के लिए निर्धारित करते हैं।
पूर्व अभिमुख को तत्पुरुष मुख कहा जाता है इसकी उपासना से मनुष्य की आत्मा अपने आप में स्थित रहती है और चित्त का निग्रह हो जाता है।
अघोर दक्षिण मुख निंदित कर्म करने वालों का पूज्य है, इसकी उपासना करने से समस्त विद्याएं मंत्र और अभिचारक प्रयोग स्वतः सिद्ध हो जाते हैं समस्त विकारों का नाश करने वाला उत्तर दिशा का मुख वामदेव है और सद्य्योजात भगवान शिव का पश्चिम दिशा का मुख बालक के समान स्वच्छ शुद्ध व निर्विकार है।
अतः सद्य्योजात पश्चिम मुख का आश्रय लेकर भगवान शिव से प्रार्थना करें। हे शिव ! आप मुझे बार बार जन्म ग्रहण के लिए प्रेरित मत करना पुनर्जन्म न होने के लिए तत्वज्ञान लाभ में प्रेरणा करें
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः।।
Shivratri – शिवोपासना में शिवलिंगों की पूजा में अपार समारोह के साथ विशाल वैभव का प्रयोग होता है। वही सरलता की दृष्टि से केवल बिल्वपत्र, जल, अक्षत और मुख वाद्य (मुख से बम बम की ध्वनि निकालना) से भी परिपूर्णता मानी जाती है और भगवान शिव की कृपा सहज उपलब्ध हो जाती है।
इसीलिए वे आशुतोष और उदारशिरोमणि कहे गए हैं। भगवान शिव की प्रदक्षिणा भी विशिष्ट रूप से होती है।
“शिवस्यार्धम् प्रदक्षिणा” अर्थात शिव की आधी परिक्रमा की जाती है। सोम सूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
मंदिर के पीछे जल नलिका प्रवाह को सोम सूत्र कहते हैं। वहां से चलकर नंदीश्वर के पीछे तक और पुनः वहां जाकर सोम सूत्र तक लौटकर आना यह प्रदक्षिणा का क्रम होता है।
पंचाक्षर मंत्र का जप भगवान शिव को अति प्रिय है । भक्ति में प्रेम और श्रद्धा का समावेश नहीं होता तब तक वह परम तत्व तक नहीं पहुंचती
हमारी सारी द्रव्यसामग्री, सारे विधिविधान, मिष्ठान्न, पकवान एवं प्रसाद बाहर ही रह जाते हैं। भगवान तक पहुंचता है केवल और केवल हमारा विशुद्ध प्रेम। भक्ति में प्रेम की अनुपस्थिति के बिना पूजा केवल यांत्रिक पूजा बनकर रह जाती है।
“शिव तत्व का ज्ञान शिव भक्ति से होता है। भगवान में प्रीति होने से भक्ति होती है। प्रीति, गुण – रहस्य आदि के श्रवण से होती है, श्रवण सत्संग से प्राप्त होता है, सत्संग का मूल सद्गुरु है इसलिए सद्गुरु के द्वारा शिव तत्व का ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य निश्चय ही मुक्त हो जाता है।”
अतएव बुद्धिमान पुरुष को शिव की भक्ति करते हुए सदा उनका भजन करना चाहिए, ऐसा करने पर निश्चय ही शिव की प्राप्ति होगी।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं। इसमें दी गई जानकारी और तथ्य की पुष्टि सनलाइट नहीं करता है।)