भारत में शास्त्र सम्मत और सामूहिक त्यौहार को मनाने की परंपरा

धर्म - कर्म विशेष

सनलाइट, कोलकाता। भारत में अनादि काल से किसी भी त्यौहार को शास्त्र सम्मत और सामूहिक रूप से मनाने की रही है और आगे भी रहेगी। यह कहना है कुंडली विशेषज्ञ राकेश व्यास का।

व्यास कहते हैं कि हमारे त्यौहार सनातन पंचांग के अनुसार मनाए जाते हैं। पंचांग ज्योतिष और खगोल विज्ञान का एक समन्वय है, जो प्राचीन भारतीय विद्वानों द्वारा विकसित किया गया था। इसमें धार्मिक, सांस्कृतिक, और खगोलीय सभी प्रकार की गणनाएँ शामिल होती हैं।

इसे बनाने वाले आम तौर पर पूजा-अनुष्ठान करने वाले पंडितों से अलग होते हैं। कोई भी उत्सव व्यक्तिगत रूप से भी मनाया जा सकता है लेकिन असल आनंद सामूहिकता में ही होता है। जब भी घर में कोई आयोजन होता है, हम अपने सभी प्रियजनों और संबंधियों को आमंत्रित करके सामूहिक रूप से आनंद मनाते हैं।

ऐसे ही जब अधिकांश हिस्सों में इस वर्ष दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जा रही है जो पंचांग के अनुसार सही तिथि भी है तो 1 नवंबर को दीपावली मनाने को लेकर क्यों विवाद हो रहा है।

यदि आपके पड़ोसी और रिश्तेदार 31 तारीख को दीपावली मना चुके हों और आप 1 तारीख को मना रहे हैं तो यह सामूहिकता की भावना को ही नही बल्कि शास्त्राचार्य व लोकाचार को भी ठेस पहुँचाएगा।

उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों और विद्वानों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि सामूहिकता में ही हमारे त्यौहारों की सच्ची भावना है, और यह परंपरा आगे भी जारी रहनी चाहिए।

यह उन चंद लोगों के लिए सोचने का समय है जो अकेले चलने में महानता समझते हैं। व्यास ने कहा कि हालांकि दीपावली में उदयातिथि का महत्व नही होता है। प्रतिपदा को लक्ष्मी पूजन व होलिका दहन नही हो सकता है।

कोई भी त्योंहार की तारीख का निर्धारण सिर्फ उदयातिथि या अन्य एक दो पहलू को देख कर ही नही किया जाता। उसके लिए बहुत कुछ देखना होता है।

कुछ लोग एक नवम्बर को दीपावली बता रहे हैं क्योंकि इस दिन उदयातिथि और प्रदोष काल दोनों है जबकि दीपावली में सिर्फ यही दो पहलू नही देखे जाते इसके लिए निशिता काल, सिंह लग्न आदि भी देखे जाते हैं।

हालांकि धर्म ग्रन्थों में जब दो दिन प्रदोष काल मे अमावस्या हो तो दूसरे दिन के प्रदोष काल में दिपावली मनाने का उल्लेख है पर सिर्फ इसी को देखकर निर्णय नही किया जा सकता है।

इस बार दीपावली पर अमावस्या तिथि दोनों दिन है और दोनों दिन प्रदोष काल में है लेकिन दूसरे दिन की प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही लोग मुख्य मान रहें है जबकि पहले दिन यानी 31 अक्टूबर को निशिता काल और सिंह लग्न भी है जिसका भी दीपावली के दिन विशेष महत्व है जो कि दूसरे दिन नही है।

उदाहरण के लिए – जैसे 2022 की दीपावली 24 अक्टूबर को मनाई गई थी। जबकि 24 अक्टूबर को अमावस्या उदय तिथि में नही थी लेकिन प्रदोष काल, निशिता काल और सिंह लग्न इसी दिन था।

जबकि 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण था, उदयातिथि में अमावस्या थी, सिर्फ प्रदोषकाल में अमावस्या नही थी। फिर भी दीपावली 24 को ही मनाई गई। मतलब 25 अक्टूबर को उदयातिथि यहां काम नही आई, निशिता काल और सिंह लग्न भी इस दिन नहीं था जो कि 1 नवंबर को भी नही है।

ऐसे में सवाल ये है कि जब 25 अक्टूबर 2022 को उदय तिथि में अमावस्या होने के बाद भी निशिता काल और प्रदोष काल नही होने के कारण दीपावली 24 को मनाई गई तो इस बार अमावस्या उदय तिथि में होने और सिर्फ प्रदोष काल के होने पर 1 नवम्बर को कैसे मनाई जा सकती है।

त्योंहार मनाने के लिए देशाचार (स्थान) और लोकाचार भी ध्यान में रखना चाहिए। इस अनुसार 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना उचित है।

कुंडली विशेषज्ञ व्यास के अनुसार केवल सनातन त्यौहारों के निर्णयों पर ही विद्वत्ता दिखा कर खुद ही अनजाने में सनातन संस्कार व संस्कृति पर प्रहार तो नही कर रहे है या अनजाने में हो रहा है इस पर विचार करना चाहिए।

अलग बंट कर कोई त्यौहार मना कर कुछ भी हासिल होने वाला नही है जो सही है वो सही रहेगा इसलिए ऐसे विषयों पर अनावश्यक भेद नही डालना चाहिए।

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