सबरीमाला मंदिर में टूटी परम्परा, दो महिलाओं ने किया प्रवेश

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तिरुअनंतपुरम। भारी विरोध के बीच बुधवार को केरल के सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं ने प्रवेश कर करीब 800 वर्षों से चली आ रही पुरानी परंपरा को तोड़ दिया है। इन महिलाओं ने तड़के करीब 3.45 पर मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस बीच मंदिर प्रशासन ने शुद्धिकरण के लिए सबरीमाला मंदिर को दो दिनों के लिए बंद कर दिया है। बिंदु और कनकदुर्गा नाम की दो महिला भक्तों ने आधी रात से ही मंदिर की चढ़ाई शुरू की और करीब 3:45 बजे मंदिर में पहुंच गईं। इसके बाद इन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना की और भगवान अयप्पा का आशीर्वाद लिया। इस दौरान दोनों महिलाओं के साथ सादे वेश में कुछ पुलिसकर्मी भी थे। दोनों महिलाओं ने पिछले महीने भी मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई थीं। मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं की उम्र 40 से 45 साल के बीच बताई गई है।
इससे पहले मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां पर परंपरा के मुताबिक पुरुषों का प्रवेश प्रतिबंधित है। वहां इसका पालन किया जाता है। इसी तरह अगर लोगों की आस्था है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश न हो तो उसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए। हालांकि पीएम ने यह भी कहा कि अदालत ने सबरीमाला मामले पर जो फैसला दिया है उसे भी देखा जाना चाहिए।
इससे पहले 23 दिसम्बर को 11 महिलाओं के एक समूह ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें भारी विरोध का समना करना पड़ा था। 10 से 50 साल के बीच की उम्र वाली इन महिलाओं को पहाड़ी पर चढ़ने से रोक दिया गया था। इसके बाद मजबूरन उन्हें वापस जाने को बाध्य होना पड़ा।
उल्लेखनिय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितम्बर, 2018 को हर आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने का फैसला 4/1 के बहुमत से दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता। हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है। हालांकि पांच जजों की पीठ की एकमात्र महिला सदस्य जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने अपने फैसले में सबरीमाला में परंपरा का पालन करने सुझाव दिया था|
हालांकि इस फैसले के बाद भी कोई भी महिला भगवान अयप्पा के दर्शन नहीं कर पाई थीं। सबरीमाला में लगातार इस फैसले का विरोध किया जा रहा है और प्रदर्शन भी जारी है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह फैसला धार्मिक परंपरा के विरुद्ध है।

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