ghazipur manoj sinha vs afzal ansari

गाजीपुर: क्या विकासवाद डुबोएगा जातिवाद की नैया ?

उत्तर प्रदेश

एक तरफ केंद्रीय राज्य मंत्री विकासपुरुष नेता के रूप में प्रसिद्ध मनोज सिन्हा तो दूसरी तरफ कई अपराधों में वांछित मुख्तार अंसारी के भाई बाहुबली अफजाल अंसारी के बीच मुकाबला होने के कारण गाजीपुर लोकसभा सीट भी काफी दिलचस्प हो गयी है।
हालांकि इस लड़ाई में कौन बाजी मारेगा, यह तो 23 मई को ही पता चल पाएगा, लेकिन वोट के माहिर खिलाड़ी अफजाल अंसारी के दांव इस समय उन्हीं को मात देते दिखाई दे रहे हैं। इसकी चर्चा लोगों के बीच चल रही है। वहीं हर वर्ग में पहुंच बनाने वाले मनोज सिन्हा की पकड़ मुस्लिम मतदाताओं में बढ़ती जा रही है। इससे महागठबंधन उम्मीदवार की चिंता की लकीरें स्पष्ट रूप से दिख रही है।

जातिवाद पर भारी विकासवाद

कुछ लोग इस सीट को जातिगत आंकड़ों से जोड़कर देख रहे हैं और अफ़ज़ाल अंसारी को विजयी मान रहे हैं तो कुछ मुस्लिम लोगों का कहना है कि जहां विकास की धारा बहती हो, वहां पर जातिगत या धर्म के आधार पर विकास की धारा को रोकना बिल्कुल उपयुक्त नहीं होगा। यह पहला चुनाव है, जब मुस्लिम समाज के लोग भी जाति-धर्म को छोड़कर विकास की धारा में बह रहे हैं। निश्चय ही इसका परिणाम सकारात्मक होगा और मनोज सिन्हा की विजय होगी।

कुछ मुस्लिम लोगों ने कहा कि आजादी के बाद भी अब तक हम आजाद नहीं थे। पहली बार मनोज सिन्हा ने अपने कार्यकाल में हमें आजादी का मतलब विकास से बताया है। ऐसे विकास पुरुष के लिए जो भी सीमाएं हैं, सब पार कर जाने की जरूरत है।

जातिगत आंकड़े

यदि गाजीपुर के जातिगत आकड़ों पर ध्यान दे तो यहां लगभग 3.60 हजार के साथ सबसे अधिक यादव मतदाता हैं। दलित वर्ग के मतदाताओं की संख्या तीन लाख के लगभग है, जबकि क्षत्रीय समाज के लोग एक लाख 75 हजार मतदाता हैं। बिंद समाज के 1.50 लाख मतदाता, कुशवाहा समाज के 1.50 लाख मतदाता, जबकि मुस्लिम समाज के 1.50 लाख मतदाता (लगभग 50 प्रतिशत अंसारी, 30 प्रतिशत खान, सैयद, 10 प्रतिशत धुनिया) हैं। इन मतदाताओं में यादव वर्ग का भी एक अच्छा मत भाजपा के खाते में आने की उम्मीद है, वहीं पिछली बार शिवकन्या के खड़े होने के कारण भाजपा का परंपरागत वोट सपा की तरफ जाने वाला कुशवाहा मतदाताओं के भी भाजपा के पाले में आने की उम्मीद राजनीतिक विश्लेषक लगा रहे हैं।

इन सभी समीकरणों और गाजीपुर के विकासपुरुष द्वारा किये गए विकास को देख कर तो यह कहा जा सकता है कि मनोज सिन्हा फिर से जीत का परचम लहरा रहें हैं। लेकिन सारे समीकरण का हल और उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला तो २३ मई को ही होना है। २३ मई को पता चल जाएगा की कौन किस पर भारी पड़ता है। विकासवाद की जीत होती है या जातिवाद की।

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